कवि का कार्य-क्षेत्र कल्पनातीत है। उसकी गति अपरिमेय है। उसकी रचना विचित्र होती है। विधाता की सृष्टि के सुंदर पट्सों की कविता के नवरसों से क्या तुलना ? कवि जीवित जीवों, जातियों तथा राष्ट्रों में भी जीवन डालता है। उसकी प्रतिभा में जगदीश्वर की ज्योति गुप्त रहती है। उसके मनस्वी मानस से सुधार की सरि- ताएँ जन्म पाती हैं। वह पतितों की नैया का पतवार पकड़ता है, और भूले हुओं को सत्पथ दिखाता है। कहीं वह वीरता का बोज वपन कराता है; कहीं शांति के स्रोत बहाता है। कहीं हास्य के हिंडोले में झुलाता है; कहीं करुणा से कलेजा कँपाता है। कहीं घृणा से जी को घिनाता है; कहीं प्रेम का पीयूष पिलाता है। वह आनंद- मय संसार में स्वच्छंद विचरण करता है। जीवन की ऊँची-नीची अवस्थाएँ उसके मन को विचलित नहीं कर सकतीं । उसकी दिव्य दृष्टि ईश्वरीय रचना के अभ्यंतर प्रविष्ट होकर सर्वेश्वर के दर्शन करती है । वह संसार को भक्ति, शक्ति और मुक्ति का सदुपदेश देता है
Sr | Chapter Name | No Of Page |
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1 | १. सूत्रधार - नाटक का प्रबंधक | 10 |
2 | २. नट- सूत्रधार का गायक | -15 |
3 | ३. भीष्मपितामह - कौरवों के पितामह | 20 |
4 | ३. भीष्मपितामह - कौरवों के पितामह | 10 |
5 | ४. अजुन - तृतीय पांडव | 10 |