वर्तमान संस्करण की प्रस्तावना लिखते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। कुछ ही वर्षों में इतने संस्करण व पुर्नमुद्रण इस बात को दर्शाता है कि पाठकों ने इस पुस्तक को बहुत उपयोगी पाया है।
Sr | Chapter Name | No Of Page |
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1 | खंड : एक- मानव शास्त्र : उद्धभव, इतिहास ,अर्थ व विषय क्षेत्र 1- मानवशास्त्र : विषय क्षेत्र व मुख्य शाखाएँ | 11 |
2 | 2- मानव शास्त्र - एक दृष्टिकोण | 8 |
3 | 3- व्यावहारिक मानव शास्त्र | 16 |
4 | 4- भारतीय मानव शास्त्र का विकास | 20 |
5 | 5- मानवशास्त्रीय क्षेत्रकार्य में शोध व तथ्य संकलन की प्रमुख प्रणालियाँ | 12 |
6 | खंड :दो संस्कृति 6- संस्कृति की मानवशास्त्रीय अवधारणा | 10 |
7 | 7- उद्भविकासवाद तथा प्रसारवाद | 12 |
8 | 8- प्रमुख सामाजिक एवं सांस्कृतिक मानवशास्त्रीय के सैंद्धांतिक योगदान | 13 |
9 | 9- प्रतीकवाद, संज्ञानतमक अभिगम तथा अभिनव नृजातिविज्ञान | 8 |
10 | खंड : तीन पुरातत्व विज्ञानं : विभिन आयाम. 10- विभिन्न प्रकार के पुरातत्व विज्ञानं के अर्थ व उनके विषय क्षेत्र | 6 |
11 | 11- महान हिम युग व उसके साक्ष्य | 6 |
12 | 12- अतीत का तिथियांकन : निश्चित तथा तुलनात्मक | 4 |
13 | 13- उपकरण प्रोधोगिकी व प्रारूप | 16 |
14 | 14- यूरोपीय प्रागितिहास | 40 |
15 | 15- भारतीय प्रागैतिहास: भारतीय संस्कृति के प्रागैतिहास एवं आद्य ऐतिहासिक आयाम | 40 |
16 | खंड: चार मानव तथा प्रकृति 16- भौतिक संस्कृति व प्रौघोगिकी | 33 |
17 | खंड: पांच जनजाति तथा कृषक वर्ग 17- जनजाति | 10 |
18 | 18- कृषक समुदाय व उनके विभिन्न पहलू | 13 |
19 | खंड: छह अनुसूचित जाति 19- अनुसूचित जाति: सामाजिक अशक्तताये सामाजिक - आर्थिक समस्याएं और दूसरे मुद्दे | 38 |
20 | खंड: सात मानव शास्त्र तथा वर्तमान संसार 20- मानवविज्ञान तथा वर्तमान संसार: वैश्वीकरण, नृजातीयता. एवं उत्तर आधुनिकता | 38 |