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दसवें खण्ड में हरिऔध जी की फुटकर रचनाएँ एक साथ दे दी गयी हैं। प्रद्युम्न-विजयव्यायोग (1893) रुक्मिणीपरिणय (1894) उनकी नाट्य कला में और काव्य कला के प्रमाण हैं। कल्पलता (1938), पवित्र पर्व (1941), प्रेमपुष्पोपहार (1904), अच्छे अच्छे गीत और स्वर्गीय संगीत में उनकी कविताओं का वैविध्य दिखाई पड़ेगा। साथ में उनकी आरम्भिक ब्रजभाषा कविताएँ और संक्षिप्त आत्मचरित भी दे दिया गया है।
Sr | Chapter Name | No Of Page |
---|---|---|
1 | श्रीप्रद्युम्नविजय व्यायोग | 40 |
2 | श्रीरुक्मिणीपरिणयनाटक | 58 |
3 | कल्पलता | 168 |
4 | पवित्र पर्व | 72 |
5 | प्रेम पुष्पोपहार | 72 |