"प्रस्तुत पुस्तक का उद्देश्य आज की आवश्यकताओं की दृष्टि से हिन्दी का व्यावहारिक ज्ञान कराना है। इसमें प्रारम्भ में हिन्दी की भाषिक व्यवस्था तथा उसकी संरचना का संकेत करते हुए उन अशुद्धियों का विवेचन है जो हिन्दी के प्रयोग में प्रायः हो जाती हैं। इस प्रसंग में एक बात विशेष रूप से उल्लेख्य है कि परम्परागत व्याकरण वाक्य-रचना तक का ही परिचय दे पाते हैं किन्तु इसमें वाक्यीय इकाई से आगे जाकर प्रोक्ति अर्थात् वाक्य अनुबन्धन को भी ले लिया गया है । अन्त में पारिभाषिक शब्दावली, हिन्दी में उसके निर्माण की प्रवृत्तियाँ, उसकी रचना तथा रचना और प्रयोग में होने वाली अशुद्धियों आदि का विवेचन है। इसका उद्देश्य हिन्दी की पारिभाषिक शब्दावली के मुख्य आयामों से पाठकों को परिचित कराना है। कहना न होगा कि आज की हिन्दी का यह एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। आशा है, पुस्तक नये सन्दर्भों में विकसित हो रही हिन्दी का ज्ञान प्राप्त करने में उपयोगी सिद्ध होगी। सम्पादकीय"
Sr | Chapter Name | No Of Page |
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1 | खण्ड 1 व्यवस्था, संरचना और अशद्धि- शोधन | 34 |
2 | खण्ड 2 पारिभाषिक शब्दावली | 34 |