Whatsapp: 9528447153
Email Us: info@ebookselibrary.com
Call Us: 9528447153
Press Ctrl+G to toggle between English & Hindi
prayojanmoolak Hindi : Parichay Evam Vividh Roop
Image Not Available
Image Not Available
Image Not Available
Image Not Available

prayojanmoolak Hindi : Parichay Evam Vividh Roop

  • 0.0

    0 Ratings

  • 0 Reviews

  • 56 Views

Author(s): ( Madhu Dhawan )

Publisher: ( Vani Prakashan )

.... Read More

Buy Ebook 123.28

Price: 270 300
You Save 30
10% off

Rent Ebook Up to 8% off

Buy Chapters 18

  • Books Details

    prayojanmoolak Hindi : Parichay Evam Vividh Roop

    "प्रचार' अपने आप में एक ऐसा तत्व है जो अपनी बात कहता है और कहते जाने में प्रवृत्त रहता है तथा दूसरे की बात सुनने में बहुत कम विश्वास करता है। इस प्रकार उसकी प्रक्रिया निरंतर अपनी कहते और करते जाना है, पर अपने इस करते जाने में दूसरी प्रतिक्रियाओं की परवाह अपने हित में करते रहता है। यहाँ यह स्पष्ट करना अधिक समीचीन प्रतीत होता है कि प्रचार का अर्थ मात्र सूचना देना या समाचार देना ही नहीं है बल्कि अपने सूच्य विषयवस्तु के व्यापक प्रसार की परिणति या उपलब्धि का प्रयास भी होता है। प्रचार के माध्यम अभिकर्ता अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए विविध उपकरणों का आश्रय ग्रहण कर निरंतर अपनी बात सम्प्रेषित करते रहने में व्यस्त रहता है और इस निरंतर सम्प्रेषण में अपनी उद्देश्यपूर्ति का ही प्रयास करता है। इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि प्रचार का अर्थ यह हुआ कि ऐसा प्रचार कार्य जो किसी क्षेत्रीय जनसामान्य के मध्य अपने विचार, नीति योजना, उत्पाद आदि को पहुँचाने के लिए किया जाता हो। डॉ. विजय कुलश्रेष्ठ ने जनसंपर्क के व्यवस्थापन के पाठ में प्रचार का अर्थ सत्य और तथ्य पर आधारित बताया है। फिर प्रचार के विशेष में यह कहा जा सकता है कि किसी क्षेत्र विशेष की जनता, किसी समुदाय विशेष, उपभोक्ता अथवा आवासियों को किन्हीं तथ्यों या विचारों से अवगत कराने का एक साधन प्रचार है जिसके अंतर्गत तथ्य और सत्य के आधार पर परिणामों का दोहन किया जा सकता है।"

    ( Madhu Dhawan )

    Category: General
    ISBN: xxx-xx-xxxx-xx-x
    Sr Chapter Name No Of Page
    1 हिन्दी आलेखन 3
    2 कार्यालय के पत्र-व्यवहार के रूप 6
    3 शासनादेश 13
    4 अर्द्धशासकीय पत्र 5
    5 कार्यालय स्मृति-पत्र 5
  • Ratings & Reviews

    Ratings & Reviews

    0

    0 Ratings &
    0 Reviews

    5
    0
    4
    0
    3
    0
    2
    0
    1
    0