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जलवायु परिवर्तन
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जलवायु परिवर्तन

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Author(s): ( डॉ. दिनेश मणि )

Publisher: ( AISECT Publication, Bhopal )

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    जलवायु परिवर्तन

    वर्तमान में जलवायु परिवर्तन एक विश्वव्यापी चर्चा का विषय बना हुआ है। विगत कुछ दशकों में जलवायु परिवर्तन विषयक जानकारी में काफी वृद्धि हुई है फिर भी अनेक प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं। इतना तो अब स्पष्ट हो चुका है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न प्रभावों को कम करने के लिए विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञों को मिल-जुलकर काम करने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन से प्राकृतिक आपदाओं में भी वृद्धि हुई है। चक्रवातों की उग्रता बढ़ी है, नदियों में भीषण बाढ़ें आने लगी हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में भू-स्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं। औद्योगिकीकरण के जोश में जीवाश्म ईंधनों का जिस गति से और जिस प्रचुर मात्रा में उपयोगीकरण हुआ है उससे ग्रीन हाउस गैसों में असाधारण वृद्धि हुई है। इस वृद्धि से वैश्विक तापन हुआ है जिसके परिणामस्वरूप जलवायु में परिवर्तन आया है। वस्तुतः विश्व के विभिन्न भागों में जलवायु में काफी परिवर्तन पाया जाता है। समुद्र उष्मा को संचित करके उसे पृथ्वी के चारों ओर गतिमान करते हैं- इस तरह वे जलवायु को रूप देते हैं। समुद्र गैसों के,विशेषतया कार्बन डाई ऑक्साइड के प्रमुख स्रोत होने के साथ ही संग्राहक भी हैं। यह कार्बन डाई ऑक्साइड जलवायु को प्रभावित करती है। वस्तुतः समुद्र तथा वायुमण्डल 1 1 मिलकर पृथ्वी के जलवायु-तंत्र की रचना करते हैं। पृथ्वी समुद्रों की अपेक्षा जल्दी गर्म और जल्दी ठंडी हो जाती है किन्तु समुद्र दीर्घकाल तक उष्मा ग्रहण करते हैं और संचित उष्मा को दीर्घकाल तक बाहर निकालते रहते हैं। अतः जब पृथ्वी की सतह सूर्य द्वारा गरमाती है या ठंडी होती है तो पृथ्वी पर ताप परिवर्तन समुद्रों की अपेक्षा ज्यादा और अधिक तेजी से होता है। जब समुद्र का कोई भाग अधिक गर्म या शीतल हो जाता है तो उसे पृथ्वी की अपेक्षा सामान्य स्थिति पर पहुॅचने में काफी समय लगता है। यही कारण है कि समुद्र तटों की जलवायु उतनी तीक्ष्ण नहीं होती जितनी कि भीतरी भू-भाग में महाद्वीपीय क्षेत्रों में। समुद्री धाराएं भी तटीय क्षेत्रों की जलवायु पर प्रभाव डालती हैं। समुद्र का जल प्रबल धाराओं के द्वारा निरंतर गतिशील बना रहता है। सतही धाराएं पवन प्रेरित होती हैं, यद्यपि पृथ्वी के परिभ्रमण तथा महाद्वीपों की उपस्थिति का भी प्रभाव पड़ता है किन्तु समुद्र की गहराइयों में उष्मन तथा शीतलन एवं वर्षा तथा वाष्पन के कारण घनत्व में अन्तर के कारण धाराएं चलती हैं। सागरीय धाराएं उष्मा का वहन करके जलवायु को प्रभावित करती

    ( डॉ. दिनेश मणि )

    Category: Higher Education,General
    ISBN: 978-93-94553-46-0
    Sr Chapter Name No Of Page
    1 विषय-प्रवेश 4
    2 जलवायु और उसके घटक 11
    3 जलवायु परिवर्तन के कारक 9
    4 जलवायु परिवर्तन के प्रभाव 11
    5 जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापन 16
    6 जलवायु परितर्वन और पर्यावरण 8
    7 जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता 11
    8 जलवायु परिवर्तन और कृषि 7
    9 जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य 78 8
    10 जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित समझौते 8
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