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भाषा के अध्ययन की एक सुदृढ़ परंपरा है, जिसका प्रारंभ उसकी प .... Read More
भाषा के अध्ययन की एक सुदृढ़ परंपरा है, जिसका प्रारंभ उसकी पहचान से हुआ है। पहचान के क्रम में ही उसके स्वरूप का निर्धारण, तत्वों की खोज और अपने अनुसंधान परक प्रकृति के कारण यह विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित हुआ और लक्षण नियम एवं प्रवृत्तियां के निर्देश के कारण इसे शास्त्रीय मान्यता मिली। फलत: भाषा विज्ञान, भाषा का शास्त्र और भाषा का इतिहास अस्तित्व में आए। आज के वैज्ञानिक युग में विभिन्न अनुशासनों के एक दूसरे पर निर्भरता की प्रवृत्ति ज्यों-ज्यों बढ़ती गई ए त्यों-त्यों भाषा के निरूपण की बहुआयामी दृष्टियों और प्रविधियों का उदय हुआ? कुल मिलाकर भाषा के अध्ययन की प्रक्रिया अत्यंत जटिल हो गई है। इसलिए आज भाषा का ऐसे विवेचन अपेक्षित है जो इसके अध्ययन की विशिष्ट पद्धतियों की स्वतंत्र पहचान कराए और भाषा को लेकर अब तक जो अध्ययन हुए हैं उनमें उपलब्ध तथ्यों और नवीनताओं को उद्घाटित करके, भाषा के सहज रूप को व्याख्यायित करे। यह पुस्तक इस दिशा में एक प्रयास है जिसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति-२०२० के अनुसार स्नातक (तृतीय वर्ष) षष्ठम सेमेस्टर के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम के अंतर्गत ‘भाषा विज्ञान, हिंदी भाषा तथा देवनागरी लिपि’ शीर्षक से तैयार किया गया है।
Sr | Chapter Name | No Of Page |
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1 | अध्याय 1. भाषा एवं भाषा विज्ञान का सामान्य परिचय | 14 |
2 | अध्याय 2. भाषिक संरचना तथा स्तर | 7 |
3 | अध्याय 3. हिन्दी भाषा की उत्पत्ति तथा विकास | 8 |
4 | अध्याय 4. हिन्दी शब्द संपदा और उसके मूल स्रोत | 12 |
5 | अध्याय 5. हिन्दी की उपभाषाओं तथा बोलियों का परिचय | 10 |
6 | अध्याय 6. हिन्दी की वैधानिक तथा संवैधानिक स्थिति | 11 |
7 | अध्याय 7. देवनागरी लिपि | 14 |
8 | अध्याय 8. क्षेत्रीय बोली का विशेष अध्ययन (क्षेत्रीय बोली का विकास क्रम) | 14 |