मानव शास्त्रियों और समाजशास्त्रियों ने धर्म की व्याख्या सामाजिक संरचना के एक आवश्यक और महत्वपूर्ण तत्व के रूप में की है, जो मानव व्यवहार को निर्धारित करने के रूप में धर्म के कार्य का वर्णन करते हैैं। अलौकिक शक्ति और उसके समावेश के प्रकार के बारे में मनुष्य की धारणाओं को व्यक्त करने की विधि का नाम धर्म है। सामाजिक जीवन में धर्म की प्रमुख भूमिका है और उनके बौद्धिक, भावनात्मक और व्यावहारिक जीवन की सभी गतिविधियों को दृढ़ता से प्रभावित करने में इसका बहुत बड़ा योगदान है।
Sr | Chapter Name | No Of Page |
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1 | भारतीय ज्ञान परंपरा : पर्यावरण दर्शन | 6 |
2 | 1. धृति (धैर्य) | 13 |
3 | 2. क्षमा (सहनशीलता) | 6 |
4 | 3. दमन (आत्मसंयम) | 14 |
5 | 4. अस्तेय (अपरिग्रह) | 5 |
6 | 5. शौच (पवित्रता) | 6 |
7 | 6. इन्द्रिय निग्रह (जितेन्द्रियता) | 9 |
8 | 7. धी (विवेक) | 6 |
9 | 8. विद्या (ज्ञान) | 5 |
10 | 9. सत्य (ईश्वर) | 9 |
11 | 10. अक्रोध (शांति) | 4 |
12 | 11. सिंहावलोकन | 4 |