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प्रेमचन्द ने अपने नाते के मामू के एक विशेष प्रसंग को लेकर .... Read More
प्रेमचन्द ने अपने नाते के मामू के एक विशेष प्रसंग को लेकर अपनी सबसे पहली रचना लिखी। १३ साल की आयु में इस रचना के पूरा होते ही प्रेमचन्द साकहत्यकार की पंक्ति में खड़े हो गए। सन् १८९४ ई० में “होनहार बिरवार के चिकने–चिकने पात” नामक नाटक की रचना की। सन् १८९८ में एक उपन्यास लिखा। लगभग इसी समय “रुठी रानी” नामक दूसरा उपन्यास जिसका विषय इतिहास था की रचना की। सन १९०२ में प्रेमा और सन् १९०४–०५ में “हम खुर्मा व हम सवाब” नामक उपन्यास लिखे गए। इन उपन्यासों में विधवा–जीवन और विधवा–समस्या का चित्रण प्रेमचन्द ने काफी अच्छे ढंग से किया।
Sr | Chapter Name | No Of Page |
---|---|---|
1 | 1. ईश्वरीय न्याय | 20 |
2 | 2. मन्त्र | 13 |
3 | 3. कप्तान साहब | 8 |
4 | 4. अलग्योझा | 21 |
5 | 5. माँ | 17 |
6 | 6. बडे भाई साहब | 9 |
7 | 7. नशा | 8 |
8 | 8. ठाकुर का कुआ | 3 |
9 | 9. झांकी | 7 |
10 | 10. ज्योति | 11 |
11 | 11. धिक्कार | 18 |
12 | 12. तिरसूल | 14 |
13 | 13. सैलानी बंदर | 10 |
14 | 14. मंदिर और मस्जिद | 11 |
15 | 15. समर यात्रा | 13 |
16 | 16. शांति | 16 |
17 | 17. बैंक का दिवाला | 16 |