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किसी भी व्यक्ति की रचनाधर्मिता जब सामाजिक सरोकारों से जु .... Read More
किसी भी व्यक्ति की रचनाधर्मिता जब सामाजिक सरोकारों से जुड़ती है तभी पूर्णता पाती है पर सामाजिक मुद्दों पर लिखने के लिए उन सब पर सतत पैनी नजर और उनकी गहरी समझ होनी जरूरी है जब कोई व्यक्ति धर्म जाति लिंग वर्ग जैसे पूर्वाग्रहो से मुक्ति हो तभी उसमें एक सही सामाजिक समझ पैदा हो सकती है ऐसी समझ हर व्यक्ति में ना तो बन पाती है और नहीं ऐसा होता ना आसान है पर जब कोई कलमकार ईमानदारी से सामाजिक मुद्दों पर लिखता है तो वह न सिर्फ समाज की स्थिति से रूबरू कराता है वरन उसकी रचना हमें गहरी छू जाती है व्यतीत करती है कई बार हमारी ही व्यथा को अभिव्यक्ति देती है हमारी उदासीनता पर हमें शर्मिंदा भी करती है हमें झकझोरती भी है निसंदे काव्य सृजन में बहुत ताकत होती है
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