भारतीय संत-कवियों में जितनाधिक सद्गुरु कबीर पर लिखा जा चुका है। और लिखा जा रहा है, स्वात् उतना किसी अन्य संत कवियों पर नहीं लिखा गया है। इसका कारण है कबीर की निष्पक्षता, दो ट्रक कहने का ढंग और बड़े-बड़े रहस्यात्मक गुत्थियों को सरल सहज उपमाओं के द्वारा व्यक्त करने की शैली। साथ ही, जहाँ अन्य संत कवि मानवता एवं शाश्वत सत्य की बातें कहते हुए भी किसी परंपरा से जुड़े रहकर किसी धर्मग्रंथ, ईश्वर अवतार, पैगंबर आदि की बैसाखी पकड़े रहे, वहाँ कबीर सारी परंपराओं से हटकर सबके सार-तत्व को स्वीकार करते हुए "पक्षपात नहि बचन, सबहिं के हित" की बातें कहते रहे, वह भी सरे बाजार चौराहे पर खड़े होकर एक अकेला और निर्दन्द्र उनकी सत्यनिष्ठा एवं निष्पक्षता ने उनके व्यक्तित्व को ऐसा महनीय 1 मोहक और चुम्बकीय बना दिया था कि जो उनके पास गया, उनका ही होकर रह गया।
Sr | Chapter Name | No Of Page |
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1 | पहला अध्याय आविर्भाव | 20 |
2 | दूसरा अध्याय : गुरु विचार | 9 |
3 | तीसरा अध्याय: चमत्कार एवं अलोकिकता | 11 |
4 | चौया अध्याय : यात्रा एवं प्रचार | 7 |
5 | पांचवां अध्याय : जीवन एवं जीवनवृत्त | 21 |
6 | छठां अध्याय प्रामाणिक रचना-बीजक | 4 |
7 | सातवां अध्याय : वेद-किताब | 5 |
8 | आठवां अध्याय: ब्राह्मण और पंडित | 5 |
9 | नवां अध्याय : कबीर साहेब के उपदेश | 14 |
10 | दसवां अध्याय : कबीर की सार्वभौमिक चेतना | 11 |
11 | ग्यारहवां अध्याय परमतत्व एवं सहज समाधि | 11 |