पूर्वजों के स्वरूप का जो चित्र हमारे सामने भ्राता है उससे हमें एक जीवन-दृष्टि मिलती है, एक प्राण-प्रेरणा मिलती है। राष्ट्र की उठती हुई पीढ़ी को उसी प्राणवान चित्र की झांकी कराना इस रचना का आधार बनामुझे जैसी मूर्ति दिखाई दी वैसी ही निश्छल भाव से मैंने अंकित की है। जहाँ से, जिस कोने से जैसी छवि दृष्टि पड़ी उसे लेखनी से उतारने में जो कुछ मुझसे शक्य हुआ। मैने किया है। वित्र की रेखाएँ स्पष्ट रखने का प्रयत्न मैंने किया और विशेषतः किशोर-करों में इसे पहुँचाने की भावना से सरल से सरल भाषा का सहारा लिया है इन गाथाओं में जो उदात्त वृत्त हैं, जो लोकोत्तर लालित्य है, जो अतुलनीय गौरव है, जो परमेश्वरी प्रकाश है वह सब स्वयं ही काव्य है। उसी घालंबन को लेकर मेरा भी मन झूम उठा और वह इस रचना के रूप में साकार हुम्रा ।
Sr | Chapter Name | No Of Page |
---|---|---|
1 | 1. हरिश्चंद्र | 31 |
2 | 2. कृष्णा | 45 |
3 | 3. बुद्ध धर्म | 33 |
4 | 4. राम | 33 |