इतिहास-प्रेमी पाठकों को वीराग्रगण्य, प्रातःस्मरणीय महाराणा प्रताप सिंह का परिचय देने की अधिक आवश्यकता नहीं। जिस समय मेवाड़ का शासन-भार इनके हाथ में आया, उसके चार वर्ष पूर्व ही चित्तौड़गढ़ मुग़ल-सम्राट अकबर के अधीन हो चुका था। मेवाड़ राज्य की सीमाएँ बहुत त हो चुकी थीं और सेना तथा कोष अत्यन्त हीनावस्था में थे। ऐसी दशा में भी मातृभूमि के उद्वारार्थ इन्होंने आजीवन उद्योग किया और राज्य का मोह छोड़ स्वतन्त्रता की रक्षा करते हुए सन् १५७२ ई० से १५६७ ई० तक २५ वर्ष तत्कालीन संसार के सबसे बड़े बादशाह अकबर का सामना अपूर्व वीरता के साथ करके स्वदेश पर प्राण-बलिदान किया। इस महात्मा का पवित्र चरित्र देशभक्ति, स्वाधीनता, स्वाभिमान, स्वावलम्बन और आत्म-त्याग आदि अनेक सद्गुणों के अपूर्व आदशों का आकर है। ऐसे अनुकरणीय आदर्श चरित्र द्वारा मैं भी अपनी मन्द लेखनी को पुनीत करना चाहता हूँ ।
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1 | 1. नवीन संस्कारन | 7 |