आज हमारी बहुत दिनोंकी अभिलाषा पूर्ण हुई है। हम बहुत दिनोंसे चाहते थे कि हिन्दी भाषा में भगवान् भाष्यकार श्रीरामानुजाचार्य स्वामी की जीवनी प्रकाशितकर हम अपना जन्म सफल करें। भगवान के अनुग्रहसे हमें आज वह सुअवसर प्राप्त हुआ है और भाष्यकारकी जोवनी लेकर हम बड़े अभिमानके साथ आज अपने श्रीवैष्णव बन्धुओंके सम्मुख उपस्थित होते हैं । कहना न होगा कि यह जीवनी हमारे पास कई वर्षोंसे लिखी पड़ी थी, और इसे प्रेसमें छापनेके लिये देनेका सुअवसर इसलिये प्राप्त नहीं हुआ था कि हम भाष्य- कारकी जीवनी छपवाकर श्रीवैष्णव मण्डलीमें बिना मूल्य वितरण करना चाहते थे । यदि हम इसे छपवाकर बिकवानेके पक्षपाती होते, तो ऐसे अनेक पुस्तक- प्रकाशक हैं, जो हाथों-हाथ इसका सर्वाधिकार क्रय करके मनमाने मूल्यपर इसे बेचते । पर यह हमको अभीष्ट न था । बहुत दिनों तक हम एक ऐसे उदार- चेता श्रीवैष्णव सज्जनकी खोजमें रहे, जो इस पुस्तकको अपने धनसे प्रकाशित कर बिना मूल्य वितरण करे । अन्तमें दयामय भगवान् के अनुग्रहसे भाष्यकार स्वामीने भिवानीके रहनेवाले तथा कलकत्ता-प्रवासी रायबहादुर बाबू विश्वेश्वर- लालजी हलवासियाको इस शुभ कार्यके करनेकी प्रेरणा की ।
Sr | Chapter Name | No Of Page |
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1 | १ श्रीरामानुजाचार्यका जन्म | 9 |
2 | २ यादवप्रकाश | 9 |
3 | ३ व्याघ- दम्पती | 4 |
4 | ४ बन्धु समागम | 4 |
5 | ५ राजकुमारी | 8 |
6 | ६ . श्रीकाचीपूर्ण | 3 |
7 | ७ श्रीआलवन्दार | 6 |
8 | ८ देह-दर्शन | 7 |
9 | ९ मन्त्र रहस्य- दीक्षा | 9 |
10 | १० सन्यास | 5 |
11 | ११ यादवप्रकाशका शिष्य होना | 8 |
12 | १२ श्रीरामानुजके भाई गोविन्दका श्रीवैष्णव होना | 4 |
13 | १३ श्रीगोष्ठीपूर्ण | 6 |
14 | १४ शिष्यो को शिक्षा-दान और स्वयं शिक्षा ग्रहण | 6 |
15 | १५ श्रीरंगनाथस्वामीके प्रधान सेवक | 6 |
16 | १६ यज्ञमूत्ति | 6 |
17 | १७ यज्ञेश और कार्पासाराम | 7 |
18 | १८ श्रीशैल-दर्शन और गोविन्द- समागम | 7 |
19 | १९ गोविन्दका सन्यास | 4 |
20 | २० श्रीभाष्यकी रचना | 4 |
21 | २१ दिग्विजय | 4 |
22 | २२ कूरेश | 4 |
23 | २३ धनुर्दास | 9 |
24 | २४ कृमिकण्ठ | 9 |
25 | २५ विष्णुवर्द्धन | 5 |
26 | २६ यादवाद्विपति | 8 |
27 | २७ श्रीरामानुजके शिष्यों के अलौकिक गुण | 7 |
28 | २८ मूर्तिप्रतिष्ठा और तिरोभाव | 7 |