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"रचनावली पहले खण्ड में हरिऔध जी के दो महाकाव्य प्रियप्रवास (1914) और वैदेही वनवास (1940) संकलित हैं। ये दोनों महाकाव्य छन्द और भाषा की दृष्टि से सर्वथा भिन्न हैं। प्रियप्रवास की रचना संस्कृत के वर्णवृत्त छन्दों और संस्कृतनिष्ठ भाषा में हुई है जबकि वैदेही वनवास में हिन्दी के तुकान्त छन्द और बोलचाल की साधारण हिन्दी प्रयुक्त हुई है। दोनों महाकाव्यों में परिचित और प्रसिद्ध विषय-वस्तु आधुनिक रूप देने का यत्न किया है। प्रियप्रवास में कृष्ण युगपुरुष हैं तो राधा का समाज सेविका और विश्व प्रेमिका रूप प्रत्यक्ष हुआ है। वैदेही वनवास में भी राम और सीता के चरित्र के माध्यम से लोक कल्याण की भावना का प्रसार दिखाया गया है। दोनों ही महाकाव्यों में हरिऔध जी की मिथकीय और पौराणिक वातावरण को तोड़ने वाली रचनात्मक प्रतिभा का परिचय मिलता है। "
Sr | Chapter Name | No Of Page |
---|---|---|
1 | प्रियप्रवास | 280 |
2 | वैदेही-वनवास | 280 |