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"तीसरे खण्ड में हरिऔध जी के चौपदे, दोहावली और बाल कवितावली .... Read More
"तीसरे खण्ड में हरिऔध जी के चौपदे, दोहावली और बाल कवितावली संकलित हैं। चोखे चौपदे (1924) और चुभते चौपदे (1926) हरिऔध जी की प्रसिद्धि का एक और आयाम हैं। चौपदों की रचना के पीछे हरिऔध जी के मन में उर्दू जुबान की तरह हिन्दी को मुहाविरेदानी से सम्पन्न करने का भाव था। चोखे चौपदे में बोलचाल की भाषा में सिर से तलवे तक नख-शिख वर्णन के अलावा लौकिक और पारलौकिक विषयों पर कविताएँ हैं। चुभते चौपदे में देश, जाति और समाज से जुड़ी कविताओं में सामाजिक कुरीतियों पर व्यंग्य भी किया गया है। बाल कवितावली (1939) की कविताएँ प्रमाणित करती हैं कि हरिऔध जी बालसाहित्य को उतना ही महत्त्व देते थे जितना साहित्य मात्र को। हरिऔध जी ने दोहा जैसे परम्परित छन्द को खड़ी बोली में ढालने का सफल उद्यम किया है। परम्परागत नख-शिख वर्णन के साथ इतिहास, देश और समाज से सम्बन्धित दोहे लिख कर हरिऔध जी ने दोहों को आधुनिक विषयवस्तु के अनुकूल बनाने का मार्ग प्रशस्त किया है। "
Sr | Chapter Name | No Of Page |
---|---|---|
1 | चोखे चौपदे | 170 |
2 | चुभते चौपदे | 150 |
3 | हरिऔध- दोहावली | 74 |
4 | बाल-कवितावली | 64 |
5 | हरिऔध-सतसई | 64 |