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चौथे खण्ड में बोलचाल (1924) और काब्योपबन (1909) संकलित हैं। बोलचाल में नाम के अनुरूप बोलचाल की भाषा का प्रयोग हुआ है। उर्दू बहरों को हिन्दी के मात्रिक छन्दों में प्रस्तुत करने का यत्न भी दिखाई देता है। मुहावरों को अत्यन्त ढंग से कविता में पिरोकर हरिऔध जी ने मुहावरों की दृष्टि से हिन्दी की समृद्धि का परिचय दिया है। काव्योपबन हरिऔध जी की खड़ी बोली में लिखी पहली कविता पुस्तक है। नये-नये छन्दों का विधान करते हुए हरिऔध जी की प्रयोगशीलता के दर्शन होते खासतौर से शार्दूल विक्रीडित छन्द के तर्ज पर मात्रिक छन्दों की रचना की है। भाषा और छन्द सम्बन्धी प्रयोगशीलता की दृष्टि से इस खण्ड में संकलित दोनों कृतियाँ विशेष महत्त्व की हैं।
Sr | Chapter Name | No Of Page |
---|---|---|
1 | बोलचाल | 388 |
2 | काब्योपबन | 128 |
3 | ऋतु-मुकुर | 128 |