"चाँद का मुँह टेढ़ा है - 'मुक्तिबोध की लम्बी कविताओं का पैटर्न विस्तृत होता है। एक विशाल म्यूरल पेंटिंग—आधुनिक प्रयोगवादी; अत्याधुनिक, जिसमें सब चीज़ें ठोस और स्थिर होती हैं; किसी बहुत ट्रैजिक सम्बन्ध के जाल में कसी हुई....। मुक्तिबोध का वास्तविक मूल्यांकन अगली, यानी अब आगे की पीढ़ी निश्चय ही करेगी; क्योंकि उसकी करुण अनुभूति को, उसकी व्यर्थता और खोखलेपन को पूरी शक्ति के साथ मुक्तिबोध ने ही अभिव्यक्त किया है। इस पीढ़ी के लिए शायद यही अपना ख़ास महान कवि हो।"
Sr | Chapter Name | No Of Page |
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1 | भूल-ग़लती | 3 |
2 | पता नहीं... | 3 |
3 | ब्रह्मराक्षस | 7 |
4 | दिमाग़ी गुहान्धकार का ओराँगउटाँग! | 3 |
5 | लकड़ी का बना रावण | 5 |
6 | चाँद का मुँह टेढ़ा है | 5 |