गंगा के शीतल जल में राजकुमारी देर तक नहाती रही, और सोचती थी अपने जीवन की अतीत घटनाएँ। तितली के ब्याह के प्रसंग से और चौबे के आने-जाने से नयी होकर वे उसकी आँखों के सामने अपना चित्र उन लहरों में खींच रही थीं। मधुबन की गृहस्थी का नशा उसे अब तक विस्मृति के अन्धकार में डाले हुए था। वह सोच रही थी-क्या वही सत्य था? इतना दिन जो मैंने किया, वह भ्रम था! मधुबन जब ब्याह कर लेगा, तब यहाँ मेरा क्या काम रह जायेगा? गृहस्थी! उसे ये चलाने के लिए तो तितली आ ही जाएगी। अहा! तितली कितनी सुन्दर है! -इसी पुस्तक से...
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1 | हिन्दी गद्य : तितली | 1 |