"इस प्राचीन मनोहर ग्रन्थ का कोई अच्छा संस्करण अब तक न था और हिन्दी प्रेमियों की रुचि अपने साहित्य के सम्यक् अध्ययन की ओर दिन-दिन बढ़ रही थी। आठ-नौ वर्ष हुए, काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने अपनी 'मनोरंजन पुस्तकमाला' के लिए मुझसे 'पद्मावत' का एक संक्षिप्त संस्करण शब्दार्थ और टिप्पणी सहित तैयार करने के लिए कहा था। मैंने आधे के लगभग ग्रन्थ तैयार भी किया था। पर पीछे यह निश्चय हुआ कि जायसी के दोनों ग्रन्थ पूरे-पूरे निकाले जायें। अतः 'पद्मावत' की वह अधूरी तैयार की हुई कॉपी बहुत दिनों तक पड़ी रही। इधर जब विश्वविद्यालयों में हिन्दी का प्रवेश हुआ और हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी साहित्य भी परीक्षा के वैकल्पिक विषयों में रखा गया, तब तो जायसी का एक शुद्ध उत्तम संस्करण निकालना अनिवार्य हो गया क्योंकि बी. ए. और एम. ए. दोनों की परीक्षाओं में पद्मावत रखी गयी। पढ़ाई प्रारम्भ हो चुकी थी और पुस्तक के बिना हर्ज हो रहा था; इससे यह निश्चय किया गया कि समग्र ग्रन्थ एकबारगी निकालने में देर होगी; अतः उसके छह-छह फार्म के खण्ड करके निकाले जायँ जिससे छात्रों का काम भी चलता रहे। कार्तिक संवत् 1980 से इन खण्डों का निकलना प्रारम्भ हो गया। चार खण्डों में 'पद्मावत' और 'अखरावट' दोनों पुस्तकें समाप्त हुईं। 'पद्मावत' की चार छपी प्रतियों के अतिरिक्त मेरे पास कैथी लिपि में लिखी एक हस्तलिखित प्रति भी थी जिससे पाठ के निश्चय करने में कुछ सहायता मिली। पाठ के सम्बन्ध में यह कह देना आवश्यक है कि वह अवधी व्याकरण और उच्चारण तथा भाषाविकास के अनुसार रखा गया है।"
Sr | Chapter Name | No Of Page |
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1 | मल्लिक मुहम्मद जायसी | 172 |
2 | पदमावत | 275 |
3 | अखरावट | 32 |
4 | आखिरी कलाम | 32 |