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"प्रस्तुत पुस्तक 'मीडिया प्रबन्धन के सांस्कृतिक आयाम' डॉ. .... Read More
"प्रस्तुत पुस्तक 'मीडिया प्रबन्धन के सांस्कृतिक आयाम' डॉ. टी.डी.एस. आलोक का मीडिया पर एक अद्भुत दस्तावेज है। आज मीडिया, स्पर्धा के विपरीत एक गला काटु होड़ में लग गया है, जिसने बाजारवाद के उपभोक्तावाद को बढ़ावा दिया। छद्म यश बटोरने की बेकार कसरत में भी मीडिया के कुप्रयत्न चिन्ताजनक हैं। मीडिया में झूठ को गरिमा के साथ प्रस्तुत करना और फिर सामूहिक रूप से झूठ को दोहराने की होड़ में लग जाना बेहद शोचनीय बातें हैं। क्योंकि सच और झूठ एकाएक न हो जाएँ यह सोच रखना मीडिया प्रबन्धकों के लिए जरूरी है। झूठ सच न लगने लगे इसके लिए मीडिया सत्ता संचालन के द्वार पर भी दस्तक देता है और युद्ध की साजिश भी रचता है। अनिश्चय और अस्पष्टता के दोषों को भी मीडिया बढ़ावा देने लगा है। प्रारम्भ से लेकर आज तक पत्रकारिता का एक उज्ज्वल इतिहास रहा है। पत्रकारिता की झोली में उपलब्धियों के सौरभयुक्त पुष्प विद्यमान हैं। आज तो मीडिया फलक पर पत्रकारिता का चेहरा बदला है। बदली तकनीक, इस चेहरे में अद्भुत निखार ला रही है। मीडिया की चकाचौंध से हम हतप्रभ हैं पर मूल्यों के अवमूल्यन ने हमें विचलित भी कर दिया है। मीडिया के प्रबन्धन ने समस्त मीडिया के आधार स्तम्भों को व्यावसायिकता से भी परे, एक तरह से धंधागिरी के कगार पर खड़ा करके रख दिया है। मीडिया सहज, सत्य एवं मूल्यों का पोषक न होकर सुविधा-सुख को प्राथमि देने लगा है। इस दृष्टि से मीडिया प्रबन्धन के सुविचारित पक्ष को उच्च प्राथमिकता देने की महती आवश्यकता है। मीडिया प्रबन्धकों को सोचना होगा कि समाज राष्ट्र और अन्ततः मानवता का सर्वोपरि हित किन मूल्यों के द्वारा सम्भव हो सकता है और उसके लिए मीडिया प्रबन्धन का मूलमंत्र और गुरुमंत्र ही इस पुस्तक का मूल कथ्य है। आशा है यह पुस्तक मीडिया के सुधी के लिए अत्यन्त रुचिकर होगी। "
Sr | Chapter Name | No Of Page |
---|---|---|
1 | मीडिया प्रबन्ध का मूलमन्त्र | 8 |
2 | मीडिया प्रबन्ध के आधार सूत्र | 9 |
3 | मीडिया प्रबन्ध का प्राण तत्त्व | 6 |
4 | विदेशी मीडिया का आगमन एक प्रश्नचिह्न | 14 |
5 | सूचना की शक्ति सत्ता | 14 |