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"राजभाषा हिन्दी का व्यवहार क्षेत्र निरन्तर व्यापक हो रहा .... Read More
"राजभाषा हिन्दी का व्यवहार क्षेत्र निरन्तर व्यापक हो रहा है। अब यह कहानी, उपन्यास, नाटक जैसी रचनात्मक विधाओं का माध्यम होने के साथ-साथ प्रशासन, विधि, शिक्षा, पत्रकारिता, विज्ञान आदि विभिन्न क्षेत्रों में अभिव्यक्ति का माध्यम बनती जा रही है। प्रस्तुत पुस्तक में जहाँ प्रयोजनमूलक हिन्दी के अर्थ, आशय, स्वरूप तथा प्रयोग को स्पष्ट किया गया है, वहीं दूसरी ओर राजभाषा के रूप में हिन्दी के निरन्तर संघर्ष और उसकी अन्तिम परिणति को भी ऐतिहासिक सन्दर्भों में विश्लेषित किया गया है। इसमें आलेखन, टिप्पण, प्रशासनिक पत्राचार, अनुवाद-कला तथा पारिभाषिक शब्दावली के निर्धारण एवं निर्माण की प्रक्रिया के साथ-साथ विज्ञापन क्षेत्र में शब्द की स्थिति और महत्ता पर प्रकाश डाला गया है और बताया गया है विभिन्न विज्ञापन अभिकरणों के मूल विज्ञापन हिन्दी में तैयार करने में किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है-इसका भी समाधान प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी, मुम्बई द्वारा सम्मानित हुई है।"
Sr | Chapter Name | No Of Page |
---|---|---|
1 | प्रयोजनमूलक हिन्दी : स्वरूप और व्यवहार क्षेत्र | 40 |
2 | स्वाधीनता संग्राम में हिन्दी की भूमिका | 16 |
3 | राजभाषा हिन्दी : संवैधानिक स्थिति और गति | 34 |
4 | अनुवाद : सामान्य सिद्धान्त और समस्या | 33 |
5 | पारिभाषिक शब्दावली | 33 |