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"प्रस्तुत ग्रंथ में हिंदी की प्रयोजनमूलक प्रमुख पांच प्र .... Read More
"प्रस्तुत ग्रंथ में हिंदी की प्रयोजनमूलक प्रमुख पांच प्रयुक्तियों-कार्यालयी, वित्त-वाणिज्य, जनसंचार माध्यम, विधि तथा वैज्ञानिक तकनीकी का विवेचन किया गया है। हर प्रयुक्ति की अपनी अलग भाषिक संरचना है। इस ग्रंथ में उक्त प्रयुक्ति की भाषागत सामान्य तथा संरचनागत विशेषताओं को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। संविधान में हिंदी को प्रमुख तथा को सहयोगी भाषा का स्थान दिया गया था। लेकिन आज स्थिति उलटी है। हिंदी अनुवाद की भाषा बन गयी है। अच्छे, आदर्श अनुवाद के सहारे भी वह अपना सही स्थान प्राप्त कर सकती है। इस ग्रंथ में उक्त पांचों प्रयुक्तियों के आदर्श अनुवाद की दिशाएँ और उसकी समस्याओं का सम्यक विवेचन किया गया है। वैश्वीकरण - बाजारीकरण का एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि अब भाषा केवल सामान्य बोलचाल और साहित्यिक सृजन क्षेत्र में ही नहीं, जीवनचर्या के विभिन्न क्षेत्रों का आधार बन रही है। अब वही भाषा प्रतिष्ठा की अधिकारी होगी, जो जीवनचर्या के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपयुक्तता सिद्ध करेगी। अतः स्पष्ट है अपनी भाषाओं को प्रतिष्ठित करने के लिए उनके व्यावहारिक- विशेष, व्यावहारिक भाषा रूपों को सशक्त करना होगा। इसीलिए प्रयोजनमूलक भाषा अध्ययन आज की मात्र आवश्यकता ही नहीं अनिवार्यता भी है। एक समय था कि किसी भाषा की सम्पन्नता का मानदण्ड उसकी साहित्यिक प्रयुक्ति मात्र था। लेकिन आज साहित्यिक प्रयुक्ति के साथ ही उसकी प्रयोजनमूलक प्रयुक्तियों के आधार पर ही उसकी सम्पन्नता नापी जा रही है। देशभर के विश्वविद्यालयों में प्रयोजनमूलक हिंदी अध्ययन-अध्यापन के साथ ही अनुसंधान का भी विषय बन गयी है। "
Sr | Chapter Name | No Of Page |
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1 | प्रयोजनमूलक हिन्दी : स्वरूप और व्यवहार क्षेत्र | 11 |