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बचपन में प्रायमरी कक्षा में हमें पढ़ाया जाता था कि भारतीय .... Read More
बचपन में प्रायमरी कक्षा में हमें पढ़ाया जाता था कि भारतीय उपमहाद्वीप में दो-दो माह चलने वाली 6 ऋतुएँ होती हैं, ये थीं। ग्रीष्म, वर्षा, शिशिर, शरद, हेमन्त और बसंत। लेकिन आजकल सर्दी और गर्मी नाम की दो ऋुतुएँ ही महसूस होती हैं। उनमें भी 10 महीने गर्मी व 2 महीने सर्दी के होते हैं। इन्हीं में कुछ दिन वर्षा भी हो जाती है, कभी गर्मी बढ़ जाती है, कभी सर्दी बढ़ जाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि ऋतुओं का संतुलन बिगड़ गया है। इसके पीछे कारण क्या हैं? अनेक अध्ययनों के उपरांत पता चला है कि ऋतुओं के इस असंतुलन का प्रमुख कारण पर्यावरण प्रदूषण का बढ़ता स्तर है। हम हमारी नदियाँ, समुद्र, जमीन, वायु, जल सभी कुछ प्रदूषित करते जा रहे हैं। इनका सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ रहा है। पर्यावरण प्रदूषण के अनेक कारक हैं। इनमें से सबसे नवीनतम कारक इलेक्ट्रॉनिक कचरा है इसे सामान्य तौर पर ‘‘ई-वेस्ट’’ के नाम से जाना जाता है। इलेक्ट्रॉनिक कचरे में उन समस्त इलेक्ट्रिक, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों व उनमें प्रयुक्त होने वाले कलपुर्जों को सम्मिलित किया जाता है जिनका कि जीवनकाल समाप्त हो गया है अर्थात वे अब तकनीकी रूप से उपयोगी नहीं रह गये हैं। हम अपने अनुपयोगी, पुराने इलेक्ट्रिक व इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे कि मोबाइल फोन, बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक खिलौने, टीवी, ट्यूबलाईट, कम्प्यूटर, मॉनीटर, की-बोर्ड बल्ब, पंखे आदि कबाड़ी को बेच देते हैं या फिर कचरे में फेंक देते हैं। जब इस इलेक्ट्रॉनिक सामान को सीधे कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है तब यह भूमि व जल को प्रदूषित करता है। वहीं जब कबाड़ी इसे प्राप्त कर निस्तारित करता है तो वह इन सामानों से कुछ धातुऐं प्राप्त करने के चक्कर में इन्हें जलाता भी है फलतः वायु प्रदूषण भी फैलता है। आज बढ़ता इलेक्ट्रॉनिक कचरा विश्व की सबसे बड़ी पर्यावरण समस्या
Sr | Chapter Name | No Of Page |
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1 | ई-वेस्ट परिचय | 17 |
2 | ई-वेस्ट निपटान की परम्परागत विधियाँ | 0 |
3 | ई-वेस्ट निपटान की परम्परागत विधियाँ | 15 |
4 | ई-वेस्ट में पाये जाने वाले तत्व | 11 |
5 | वेस्ट के नुकसानदेय पदार्थ युक्त घटक | 11 |